चोटी की पकड़–12
दूसरों की तरह राजेंद्रप्रताप ने भी दावत दी।
कोठी सजी। कलकत्ता के और वहाँ आए हुए बंगाल के ज़मींदार आमंत्रित हुए।
निमंत्रण-पत्र में लिखा गया, राजकुमारी के ब्याह की दावत है।
अच्छे पाचक बुलाए गए।
राजभोग पका। विलायत की कीमती शराबें आईं और कलकत्ता की सुप्रसिद्ध गायिका-वेश्याएँ।
विशाल अहाते में जमींदारों की बग्घियों का तांता लग गया।
प्रचंड रोशनी हुई।
आलीशान बैठक में राजे और जमींदार गद्दियों पर तकियों के सहारे बैठे।
शराब ढलने लगी। गायिकाओं के नृत्य और गीत होने लगे।
कुछ ही समय में भोजन का बुलावा हुआ।
राजसी ठाट के आसन लगे थे। सोने और चाँदी के बरतनों में भोजन लगाकर लाया गया।
सबने प्रशंसा करते हुए भोजन पाया। इशारे से बातचीत होती रही। सब-के-सब एकमत थे।
भोजन के बाद थोड़ी देर तक गाना सुनकर, सभी श्रेणियों के लोगों को इनाम देकर जमींदार लोग अपनी-अपनी कोठियों को रवाना हुए।
गायिकाएँ भी गईं। केवल एक आदमी बैठा रहा। वह कलकत्ते का एक प्रसिद्ध बैरिस्टर है। उस समय कमरे में कोई न था।
उसने राजेंद्रप्रताप से कहा, "हमको जगह चाहिए।
आप लोगों के पास जगह की कमी नहीं।
वहाँ कार्यकर्ता छिपकर काम करेंगे। आप उनकी निगरानी रख सकते हैं।"